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Chakravyuh (चक्रव्यूह)



जब भी कोई व्यक्ति  चक्रव्यूह कि बात करता है तब आपकी  परछाई  ही आपके साथ होती  है। उस व्यूह बनाने वाले कि  गवाह होती है चक्रव्यूह ऐसा साधन होता है। जो आपको हर परस्तिथि से निपटने में कामयाब बनाता है वह रणनीति को मजबूत बानाता है। और अपने गंतव्य पर जीत हासिल कराता है 






प्राचीन काल में युद्ध के दौरान दोनो पक्ष की सेना चक्रव्यूह जैसे व्यूह की रचना करती थी। जिसमे सबसे ज्यादा घातक व्यूह चक्रव्यूह को माना जाता है। ऐसा माना जाता है की प्राचीन काल में चक्रव्यूह युद्ध की ऐसी रणनीति थी जिसमे बड़े से बड़े योद्धा को भी मात मिल जाती थी। इस व्यूह की रचना में हजारों सैनिकों का इस्तेमाल किया जाता था जो कई किलोमीटर की दूरी तक एक ऐसा चक्रव्यूह बना लेते थे, जिसमें प्रवेश करके कोई भी आसानी से बाहर नहीं निकल सकता था। इस व्यूह की रचना में हजारो सैनिक हमेशा अपना स्थान बदलते रहते थे जिस वजह से चक्रव्यूह ऊंचाई से देखने पर एक घूमते हुए चक्र की तरह दिखाई देता था। चक्रव्यूह को देखने पर इसमें अंदर जाने का रास्ता तो नजर आता था, लेकिन बाहर निकलने का रास्ता नहीं दिखाई देता था।







चक्रव्यूह में सैनिको की सात सुरक्षा नीति हुआ करती थी। जिसमे सबसे पहली सुरक्षा नीति  के सैनिक हमेशा चारो ओर घूमते रहते थे। चक्रव्यूह के पहले सुरक्षा नीति पर सामान्य सैनिकों को तैनात किया जाता था। यदि कोई योद्धा पहले पढ़ाव के किसी सैनिक को मारकर अंदर प्रवेश कर भी जाता था तो मरे हुए सैनिको की जगह क्षण भर में दूसरे सैनिक ले लेते थे। चक्रव्यूह के दूसरे पढ़ाव में पहली नीति  के मुकाबले ज्यादा कुशल सैनिको को तैनात किया जाता था ताकि वो दुशमनो को अंदर जाने से रोक सके। ठीक इसी तरह व्यूह के छठी सुरक्षा घेरे तक युद्ध कौशल के हिसाब से सैनिकों और योद्धाओं को तैनात किया जाता था और सबसे अंतिम यानि सातवे पड़ाव में व्यूह की रचना करने वाले अपने सबसे कुशल और बलशाली महारथियों को रखते थे। 



चक्रव्यूह को उस समय इसलिए युद्ध की सबसे घातक रणनीति माना जाता था क्यूंकि अगर कोई योद्धा लगातार लड़ते हुए अंदर की ओर बढ़ता जाएगा तो स्वाभाविक है की वह थकता भी जाएगा। जैसे-जैसे वो पढ़ाव को भेदता हुआ अंदर बढ़ता जाएगा, उसी प्रकार अंदर के जिन योद्धाओं से उसका सामना होगा वो थके हुए नहीं होंगे। पहले योद्धाओं से ज्यादा शक्तिशाली और युद्ध कौशल में ज्यादा निपुण होंगे। शारीरिक और मानसिक रूप से थके हुए योद्धा के लिए । अंदर फंस जाने पर जीतना या बाहर निकलना बहुत ज्यादा मुश्किल हो जाता था। और यही कारण था की जिस योद्धा को इस व्यूह को भेदने की पूरी जानकारी नहीं होती थी वह सातवें सुरक्षा घेरे तक जाते जाते थक जाता था और आपको याद ही होगा की जब कौरव पक्ष के योद्धाओं ने अभिमन्यु का वध किया था तो वो भी चक्रव्यूह के सातवें घेरे पर था और बेहद ही थका हुआ था।

 
प्राचीन ग्रन्थों के अनुसार चक्रव्यूह को वही योद्धा भेद सकता है जो युद्ध निति के साथ साथ एक कुशल धनुर्धर हो। क्योंकि जब एक कुशल योद्धा चक्रव्यूह में प्रवेश करता है तो वह पहले से ही व्यूह से निकलने का मार्ग प्रशस्त कर लेता है। वह जानता है की बाहर की ओर योद्धाओं की संख्या कम है जबकि अंदर के योद्धाओं का घेराव ज्यादा है। घेराव को  बराबर खत्म करने के लिए ये जरूरी होगा कि बाहर की ओर खड़े अधिक से अधिक योद्धाओं को मारा जाए। इसलिए वह व्यूह को घुमाते-चलाते रखने के लिए अधिक से अधिक योद्धाओं को अंदर से बाहर धकेलता जाता है। इससे अंदर की तरफ योद्धाओं का घेराव कम हो होता जाता है। साथ ही एक कुशल योद्धा को यह भी मालूम होता है कि घूमते हुए चक्रव्यूह में एक खाली स्थान भी आता है, जहां से वह निकल सकता है। और इस तरह वह योद्धओं को मारता हुआ व्यूह से निकल जाने मे कामयाब होता है। हालाँकि आज की इस कलयुग युद्ध की नीति का कोई महत्त्व नहीं रह गया है ।

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